रीति रिवाज & माहेश्वरी समाज के रीति रिवाज
  • Home
  • हमारे रीति रिवाज
    • शिशु जन्म
    • सगाई
    • सावा बान बत्तीसी मायरा
    • पीठी बरणा निकासी
    • ढुकाव फेरा बिदाई
    • विवाह विवेचन
    • विवाह पश्चात नेगचार
    • देवी देवताओं के गीत
    • देहावसान
  • हमारे गीत
  • कैसा लगा / सुझाव
रीति रिवाज & माहेश्वरी समाज के रीति रिवाज
X
रीति रिवाज & माहेश्वरी समाज के रीति रिवाज
About Us

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use real content in the Consulting Process, anytime you reach a review point you’ll end up reviewing and negotiating the content itself and not the design.

Consultation
Contact Info
  • Chicago 12, Melborne City, USA
  • (111) 111-111-1111
  • roonix@gmail.com
  • Week Days: 09.00 to 18.00 Sunday: Closed

पीठी बरणा निकासी

  • Home
  • पीठी बरणा निकासी
Download PDF

साँकड़ी, राखी, पीठी, बीन बीनणी बनाना, बरणा, निकासी

बिहाणा - बनड़ा / बनड़ी (तैयार)

एक चौकी, मिट्टी का कलश, प्लेट, गेहूं, गुड़, मूंग, मेहंदी, पीठी, गट, मेवा की छोटी थैलियां, ब्राह्मणियों के लिए लिफाफे ।

बिहाणा :

चौकी पर मूंग रखकर कलश रखते हैं। चौकी के नीचे एक प्लेट में गेहूं व गुड़ रख देते हैं मेहंदी एवं पीठी घोळ लेते हैं। सभी एकत्र महिलाओं को तिलक करते हैं । सभी महिलाएं थोड़ी पीठी हाथों में मसल लेती हैं। मेहंदी से नाखून लगा लेती हैं। बिहाणा के गीत गाती हैं । (देवी- देवताओं को स्तुति-पूर्वक आवाह्न) सभी महिलाओं को मेवा की थैली दी जाती हैं । ब्राह्मणियों को लिफाफे दिये जाते हैं ।

साकड़ी, राखी, विनायक (तैयारी) :

मायां का पन्ना (आजकल बाजार में बहुत सुन्दर बना-बनाया मिलता है), गणेशजी की मूर्ति, मूर्ति के लिये ओढ़ना, आरता की थाली (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब, जल की गड्डी), गुलाबी कागज, कच्चा सूत, काजल, कुमकुम, पान--11, सुपारी -- 11, रोळी, मोळी, चावल, गुड़, लौंग, इलायची, केला, जनेऊ, अगरबत्ती, नारियल, गेहूं, बतासा, लाल वस्त्र आधा मीटर, सफेद वस्त्र आधा मीटर, चौकी, फूल, दूर्वा, आम की डाळी, लकड़ी का गट्ठर, नीम की डाळी, दीपक, घी, विनायक की खोळ के लिये मेवा, कपड़े एवं लिफाफा, लापसी एवं चावल, बड़ी की सब्जी, लाख की सात चूड़ी, राखी 7 या 11 (जिसमें लूणराई- लाल कपड़े में पोटली बांधकर, सोना, चांदी, लोहा एवं लाख के गोलिया, कोडी, इन सबको मोळी में बटकर थोड़ी-थोड़ी दूर पर बांध लेते हैं ।)

बरी की तैयारी (लड़के के विवाह में ) :

बरी में तापड़िया परिवार में तो साढ़े तीन बेस होते हैं (घाघरा, चुन्नी, चार साड़ियां, एक चुनड़ी), सोने की चेन में बालाजी की मूर्ति एवं छींक, बोरिया या मांगटीका, गहने, शृंगार का सामान, सजाने का सामान ( इच्छानुसार) । पाजेब, बिछुड़ी, चाबी का कड़ा, सेणसूत (चांदी के तांत से हाथ में पहिनने का कड़ा जैसा होता है), चांदी की चार डब्बी (जिसमें सिन्दूर, मेण, बिन्दी, चमकी) रखते हैं । लक्ष्मीजी अंकित सेवरा, कांच चांदी की फ्रेम का, कंघा, तेल, चोटी, इत्र, पर्स में रुपये, चप्पल, चार गट, चार मोळी के गट्टे, चार मिसरी के सिट्टे, सुहागपूड़ा, दो खोळ का सामान (एक बरी के समय व एक फेरों के बाद भरते हैं), फेर पाटे का बेस ।

कांकण - डोरा ( बनड़ा / बनड़ी) :

मोळी बटकर सात गांठें लगाकर ऐसी दो राखी बनाते हैं जिसे कांकण - डोरा कहते हैं। एक कांकण - डोरा, बीन के दाहिने हाथ एवं दूसरा बीन के दाहिने पांव में मायां की धोक के समय बांधते हैं । बनड़ी को बायें हाथ एवं बायें पैर में बांधते हैं।

पीठी- बनड़ा / बनड़ी (तैयारी) :

एक थाली में पिसी हुई पीठी (बानवाले दिन जो पीठी पीसते हैं वह), जरा सी हल्दी, तेल, पानी से घोळते हैं। थाली में दूब भी रखते हैं ।

पीठी चढ़ाना / उतारना - बनड़ा / बनड़ी :

दो चौकी लगा देते हैं । दाहिनी चौकी पर विनायक एवं बायीं पर बनड़ा / बनड़ी को बैठाकर पांच या सात सुहागिनें (जैसी घर में उपस्थिति हो), पहले विनायक के सात बार फिर बनड़ा / बनड़ी को सात बार पीठी चढ़ाते हैं । पीठी नीचे से ऊपर चढ़ाई जाती है। दोनों हाथों को क्रोस करके चढ़ाई जाती है। पहले पांवों पर, फिर घुटनों पर (बनड़ा/बनड़ी के हाथ दोनों घुटनो पर रखे हुये होने चाहिये), फिर हाथों पर, फिर कंधों पर, फिर सिर में पीठी लगाएं। (पीठी चढ़ाने का गीत गाते हैं ) । आजकल समय की कमी के कारण चढ़ाना - उतारना साथ ही करते हैं। उतारते वक्त क्रम ऊपर से नीचे करते हैं एवं हाथ क्रोस नहीं करते। सीधे हाथों से उतारते हैं पहले- सिर पर, फिर कंधे पर, फिर दोनों हाथों पर, फिर दोनों पांवों पर लगाते हैं। पीठी उतारने का भी गीत गाते हैं। पीठी चढ़ाने एवं उतारने का गीत अध्याय 8 में बताया गया है।

झोळ डालना - बनड़ा / बनड़ी (तैयारी) :

मिट्टी के एक छोटे कलश में दही ( हल्का गर्म करके), हल्दी, मूंग एवं 5 रुपये का सिक्का डालकर ऊपर से लाल कपड़े से ढ़ककर उसमें बेलन रखते हैं।

झोळ डालना (अटाण घालना) - बनड़ा / बनड़ी

झाळ (अटाण) डालन के लिए काइ भा बहू-बेटा जा चार मा-बाप का हा (चार मा-बाप का मतलब- मां, पिता, सासु, ससुर वाली को चार मां-बाप की बोलते हैं), वह झोळ (अटाण) लाती है। एक माटी के कलश में दही, हल्दी, मूंग, एक रुपया डालकर थोड़ा गरम करते हैं। उसमें बेलन डालकर पल्लू से ढ़ककर लाती है। इसको झोळ (अटाण) कहते हैं । सर्वप्रथम पिताजी विनायक के सर पर झोळ बेलन से 7 बार डालते हैं एवं मां मसलती है । पश्चात् पिताजी बेलन से सात बार झोळ बनड़ा / बनड़ी के सिर पर डालते हैं एवं मां दोनों हाथों से मसलती है । (झोळ डालने का गीत गाया जाता है ।) झोळ बनाकर लावे उसको नेग देते हैं। इसके बाद बनड़ा/बनड़ी नहाने को चले जाते हैं । झोल डालने का गीत अध्याय 8 में बताया गया है।

चाक मंगाना एवं पूजन (लड़की के विवाह में ) :

पुराने जमाने में गांवों में चाक (चक्र, Wheel सा यंत्र जिससे कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाता है) पूजने के लिये कुम्हार के घर जाते थे । वर / वधू की मां चाक की पूजा करती थी । रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब चढ़ाती थी। रुपये देती थी । कुम्हार व कुम्हारी को तिलक करके रुपये व मिठाई देती थी। वहां से दो कलश ढ़क्कन सहित ( एक कलश थाम के लिये ढ़क्कन सहित, एक कलश बिहाणा के लिये ढ़क्कन सहित एवं एक कलश अटाण के लिये एवं एक कलश मायां की पूजा के लिये तथा 7 बेह की हांडी (एक के ऊपर एक क्रम से आये वैसी), टोटल 11 बर्तन लाते थे । घड़ो के रुपये अलग देते थे । बेह व थामवाले कलशों को सजाकर 2-2 बर्तन प्रत्येक चाक पूजा में आनेवाली बहूवें व सुवासनी के सिर पर रखकर बैंड बाजे के साथ गीत गाती हुई वापस घर आती थीं । घर आने पर उन सबको तिलक करके बर्तन उतारकर जहां मायां मांडते थे, वहां एक तरफ रख देते थे। आजकल समय पर बाजार से खरीदकर लाते हैं एवं समय पर पूजा कर लेते हैं ।

मूंगधणा बधारना बनड़ा / बनड़ी :

लकड़ी के गट्ठर को मूंगधणा कहते हैं। (लकड़ी के गट्ठर के साथ नीम की हरी डाळी लाई जाती है)। नौकर / महाराज या नाई किसी के सिर पर छोटा-सा लकड़ी का गट्ठर बनाकर रखते हैं एवं घर के दरवाजे पर उसे खड़ा कर देते हैं। फिर आरता की थाली लेकर औरतें गीत गाती हुई जाती हैं। बनड़े / बनड़ी की मां लकड़ी के भारे की पूजा करती है। जिसके सिर पर मूंगधणा रखा हो उसको तिलक करती है एवं नेग का लिफाफा देती है। फिर मूंगधणा घर के एक कोने में रखवा देते हैं। विवाह का काम पूरा होने तक वहीं रहने देते हैं।

विनायक बधारना - बनड़ा / बनड़ी :

गणेशजी की मूर्ति को अच्छी तरह सजाकर ओढ़ना ओढ़ा देते हैं । एक कुंवारी कन्या को सिर पर विनायकजी को रखकर घर के दरवाजे पर खड़ाकर देते हैं। सभी औरतें गीत गाती हुई विनायकजी की पूजाकर विनायकजी को आगे कर बड़ा विनायक गाती हुए घर में लाकर मायां की जगह पर विनायकजी को विराजमान कर देती हैं। इसे विनायक बधारना कहते हैं । जिस लड़की के सिर पर विनायकजी लाते हैं उसको तिलक करके लिफाफा देते हैं। इस समय बड़ा विनायक पूरा गाते हैं।

स्तम्भ-रोपण एवं पूजा (लड़की के विवाह में) :

तैयारी:

रोळी, मोळी, गट, पुष्प, दुर्वा, गुड़, पांच पान, पांच सुपारी, 100 ग्राम चावल, माटी का एक छोटा कलश ढ़क्कन सहित, एक नारियल, दो फल, लाल वस्त्र आधा मीटर, सफेद वस्त्र आधा मीटर, एक स्तम्भ, एक खाली टीन, मिट्टी- टीन में भरने के लिये, माटी के कलश 7 (बेह के बर्तन बड़े पर छोटे मेल करते हुये ।)

विधि :

स्तम्भ-रोपण के लिये लड़कीवाले, लड़केवालों को फोन करते हैं जो निर्धारित मुहूर्त के समय पर अपने परिवार के बड़े अथवा जंवाई को स्तम्भ - रोपण के लिये भेजते हैं। लड़केवालों से आये हुये घर का बड़ा व जंवाई पूजा में बैठते हैं। पण्डितजी, स्तम्भ की पूजा आये हुये लड़के पूजा आये हुये लड़के के परिवार के बड़े व जंवाई के हाथ से कराते हैं ।

पूजा के पश्चात् लड़केवालों के परिवार से आये हुये बड़े / जंवाई को नाश्ता कराते हैं एवं लिफाफा देते हैं। उनके साथ में आये हुये आदमी / ड्राइवर को भी नाश्ता कराते हैं। उन्हें भी लिफाफा देते हैं।

लखधन बनाना (बनड़ा / बनड़ी ) :

(गुड़, साबूत धनिया, जीरा, अजवायन, लाख का टुकड़ा, चांदी का टुकड़ा, सोना का टुकड़ा, ताम्बा का टुकड़ा), इन सबको मिलाकर गोल लड्डू जैसा बनाया जाता है जिसे लखधन कहते हैं । सुविधा हेतु आजकल लखधन को एक पलास्टिक की थैली में रखकर ऊपर से मोळी बांध देते हैं ।

बीन बनाना, लख लेना एवं पाटा उतारना :

नहाकर आने के बाद बनड़ा को पाटा (चौकी) पर खड़ा करके भूवा या बहिन तिलक करती है । चौकी के नीचे मूंग एवं एक रुपया रखते हैं बनड़े के गले में हनुमानजी की मूर्ति पहिनाते हैं। उसके बाद वे सात सुहागिनें जो पीठी चढ़ाती हैं वही लख लेती हैं। पहले विनायक फिर बनड़े से । बायीं तरफ बनड़ा एवं दाहिनी तरफ विनायक को खड़ा करते हैं । सात सात बार लख लेती हैं। (लख का गीत गाया जाता है) फिर मामा बनड़ा को चौकी से उतारता है । चौकी के सामने एक सिकोरा उलटा रखते हैं । सिकोरे में गट भी रखते हैं। सिकोरे के नीचे मूंग व रुपये रखते हैं । बनड़ा दाहिने पांव से सिकोरे एवं गट को तोड़ता है एवं मामा बनड़ा के हाथ में लिफाफा देता है । ( आजकल एक ही वार पाटे से उतारते हैं ।) इसके बाद बनड़ा को मायां के पास ले जाते हैं। लख के गीत अध्याय 8 में बताये गये हैं।

बिनणी बनाना, लख लेना एवं पाटा उतारना :

नहाकर आने के बाद बनड़ी को पाटा (चौकी) के ऊपर बैठाकर दुल्हन बनाते हैं । विनायक को दाहिनी तरफ एवं बनड़ी को बाईं तरफ बैठाते हैं। चौकी के नीचे मूंग एवं एक रुपया रखते हैं। बनड़ी को नहाने के बाद वहीं पर कोरा- भाता (सफेद (सफेद ढ़ाई मीटर का कपड़ा) पेटीकोट पर पहिना देते हैं। ऊपर से साड़ी पहिना देते हैं । आजकल बनड़ी को तैयार करने के लिए बाहर से मेकपवाली आती है या मेकप के लिये बनड़ी बाहर जाती है इसलिए उसे पूरा तैयार नहीं करते हैं । बहिन या भूवा तिलक करती है । फिर घर की बड़ी महिला -- दादी, बड़ी मां, मां, काकी -- कोई एक पहले हनुमानजी की मूर्ति पहिनाती है ।

यदि ससुराल से कोई देवी-देवता की मूर्ति पहिनाने के लिये आई हो तो वह भी पहिना देते हैं। इसके बाद चूड़ा पहिनाते हैं । पहले बनड़ी के दाहिने हाथ में पांच चूड़ी पहिनाते हैं । उसके बाद बनड़ी के बायें हाथ में छह चूड़ी पहनाते हैं । शेष एक चूड़ी पहिनानेवाली को दी जाती है । नथ, सेणसूत (चांदी के तांत से हाथ में पहिनने का कड़ा) जो ससुराल से आता है, पाजेब, बिछुड़ी व चप्पल पहिनाते हैं। उसके बाद सात सुहागिन जो पीठी चढ़ाती हैं, वे ही सात बार लख लेती हैं । पहले विनायक से फिर बनड़ी से लख लेती हैं । फिर बनड़ी को मामा चौकी से उतारता है । चौकी के सामने एक सिकोरा जिसमें एक गट रखते हैं उसे उल्टा रख देते हैं । सिकोरे के नीचे मूंग एवं एक रुपया रखते हैं। बनड़ी दाहिने पांव से सिकोरा एवं गट को तोड़ती है (आजकल एक ही बार पाटे से उतारते हैं।) उसके बाद मामा, लड़की को मायां के पास ले जाता है ।

मायां की थरपना-बनड़ा / बनड़ी :

आज के दिन मायां की थरपना होती है । पूजा तो पण्डितजी करवाते हैं। मायां का पन्ना एक प्लाई के टुकड़े पर लगाकर दिवाल के पास खड़ाकर देते हैं। (यह पाटा जहां विवाह होता है वहां लेकर जाते हैं ।) पुराने समय में तो विवाह घर में ही होता था, इसलिए वहीं दिवाल पर ही मायां मांडते थे। मायां के पन्ने के पास में एक पिंक कागज को दिवाल पर लगा देते हैं । उसके ऊपर बनड़ा / बनड़ी के दाहिने हाथ से पीठी का छापा लगवाते हैं और बायें हाथ से मेहंदी का छापा लगवाते हैं । उसके नीचे घी के सात झारे लगवाते हैं। बाकी पूजा पण्डितजी कराते हैं। सात लावणा के ऊपर एक-एक लाल लाख की चूड़ी रखते हैं । बनड़ा / बनड़ी उन सात लावणा के ऊपर हाथ लगाते हैं। बीन के दाहिने हाथ एवं दाहिने पांव में कांकण - डोरा बांधते हैं । बनड़ी के बायें हाथ एवं बायें पैर में कांकण - डोरा बांधते हैं। उसके बाद सात सुहागिनों के साथ बनड़ी गणगौर पूजती है | गणगौर के गीत गाते हैं। पहले दादी, फिर बड़ी मां, फिर मां के साथ बनड़ी गणगौर पूजती है, फिर औरों के साथ भी (कुल सात जनी होनी चाहिये) पूजती है । विनायक को इसी समय विदा कर देते हैं । बनड़ी / बनड़े के पिता अथवा मां विनायक को तिलक करते हैं एवं कपड़े, मेवा व लिफाफा देते हैं। इसके बाद बनड़ी, बीनणी बनने के लिये ब्युटी पार्लर जाती है अथवा Beautician घर आती है । गणगौर पूजने का गीत अध्याय 8 में बताया गया है।

वरणा :

पुराने जमाने में जब बारात डेरा से ढुकाव के लिये रवाना होती थी तो रास्ते में एक चौराहे पर बारात को रोकते थे। बीन घोड़ी से उतरता था । चौराहे पर दरी लगाकर बीन के बैठने की गद्दी एवं पूजा का पाटा लगाते थे। वर / वधू दोनों पक्ष के पण्डितजी, पंचोपचार पूजा कराकर गोत्रोच्चार करते थे। जिसे वरणा कहते हैं । वधू परिवार की महिलाएं बीन की पीठी उतारती थीं एवं बीन के साथ लख लेती थीं । सगों की मिलनी होती थी। आजकल यह रिवाज चौराहे पर नहीं होता है। (वरणा, तापड़िया परिवार में फेरों के समय होता है ।) कहीं कहीं रिवाज है कि लड़कीवाले, लड़केवालों के घर वरणा लेकर जाते हैं । वरणा के लिये लड़की के माता-पिता अथवा अन्य जो फेरे में बैठते हैं वे तथा परिवार के पांच-सात बड़े वरणा में जाते हैं। मायरदारों में भी जो बड़े होते हैं वे भी साथ में जाते हैं । उपरोक्त पूजा लड़केवालों के घर पर होती है।

वरणा की तैयारी :

पूजा की थाली (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब, जल की गड्डी), लग्न-पत्रिका, गठजोड़ा, पांव धोने के लिये थाली, गड्डी में दूध मिला हुआ पानी, गमछा, वर के लिये एक पोशाक, वर के लिये लिफाफा, माला, पूजा के लिये रुपये, सगों को मिलनी देने के लिफाफे एवं दोनों पक्ष के पण्डितजी के लिये लिफाफे ।

विधि :

आपस में जयगोपाल के पश्चात् वधू के माता-पिता पूजा में बैठते हैं । वर का मुँह पूर्व दिशा की तरफ होता है । वधू के माता-पिता वर के समाने बैठते हैं । सर्वप्रथम वधू पक्ष के पण्डितजी वधू के माता-पिता को गठजोड़ा बांधते हैं। पण्डितजी वधू के माता-पिता से गणेशजी की पंचोपचार पूजा कराते हैं। वर के पांव धोने के लिये थाली रखते हैं । वधू की माँ दूध मिला हुआ पानी डालती है एवं वधू के पिता वर के दोनों पांव धोते हैं एवं गमछा से पौंछते हैं। हाथ धोने के पश्चात् रोळी, चावल से वर के दोनों पैरों की पूजा करते हैं, पश्चात् वर को तिलक करते हैं, गुड़ से मुंह ओठाते हैं, माला पहिनाते हैं, पोशाक एवं लिफाफा देते हैं। तत्पश्चात गोत्रोचार होता है। सर्वप्रथम वधू-पक्ष के पण्डितजी कन्या का गोत्रोचार एवं कन्या की तीन पीढ़ी -- पड़दादा, दादा एवं पिता का नामोच्चारण करते हैं। पश्चात् वर पक्ष के पण्डितजी वर का गोत्रोचार करते हैं एवं वर की तीन पीढ़ी -- पड़दादा, दादा एवं पिता का नामोच्चारण करते हैं। दोनों पंडितजी तीन-तीन वार गोत्र एवं नामों का उच्चारण सस्वर करते हैं । गोत्र एवं नामोच्चारण का उद्देश्य वर एवं वधू के गोत्र एवं वंश की जानकारी समाज में देनी व घोषणा करनी होता है । वरणा के पश्चात् वर पक्ष के बड़ों की वधू पक्ष के बड़ों द्वारा मिलती भी होती है ।

List of items for Dressing BEEND RAJA :

  1. Kilangi
  2. Pankh for Kilangi (not fur but of 3 tiers)
  3. Heera-Ekladi
  4. Panna-tilada haar
  5. Saafa - 9 mts. Min. (not saree, not georgette), cotton saafa with full starch
  6. Sherwani
  7. Kurta (without collar, length & sleeves shorter than Sherwani)
  8. Churidar pajama
  9. Socks (white or matching mochadi)
  10. Mochadi
  11. Handkerchief (white or matching Sherwani)
  12. Kamar Bandh
  13. Gath-joda
  14. Naryal (Small)
  15. Tilak
  16. Kas
  17. Sewara Two (one Sun-marked, another Laxmiji-marked) to be tied on right side of Safa/Pecha
  18. Kataar
  19. Al pins (sharp, not rusted)
  20. Safety-pins (all sizes, steel and brass)
  21. Bob pins
  22. Kaajal
  23. Compact powder
  24. Talcum powder
  25. Thread (white & red)
  26. Needle (medium size)
  27. Scissors (small)

Note: It takes one hour to get Beendraja ready.

beendraja
Dressing Beend Raja

बीन को तैयार करना, गौर पूजना, मायां को धोक एवं कलश पूजन :

सूट अथवा शेरवानी, कुर्त्ता एवं पाजामा, नई गंजी, अण्डरवीयर, मोजा, रूमाल, गठ-जोड़ा, छोटा नारियल (जो कमर में बांधते हैं), कस, पेचा या साफा, सेवरा दो (एक सूरज का दूसरा लक्ष्मीजी का ), सेवरा बीन के साफे / पेचा के दाहिनी तरफ बांधते हैं। बिनणी के बाईं तरफ बांधते हैं। किंलगी, कटार, गले में कंठा, अंगूठी, माथे पर तिलक । बीन बनाने की आवश्यक सामग्री की पूरी लिस्ट संलग्न है। बीन - राजा तैयार होकर मायां को धोक देते हैं । पहले-- दादी, फिर बड़ी मां एवं फिर मां मिलकर कुल सात सुहागिनों के साथ बीन गणगौर पूजता है। गणगौर पूजकर मायां एवं देवी / देवता को नारियल बधारते हैं । बहिन/भूवा आरता करती है। आज बड़ा आरता होता है । आरता का नेग दिया जाता है। सभी नेगचार पूरे होने पश्चात् बीन जब घोड़ी पर चढ़ने के लिये जाय तो घर की एक सुहासिनी (भूवा / बहिन / बेटी -- विवाह जिसका हो चुका हो उसे सुहासिनी कहते हैं ।) चांदी के एक लोटे में जल, आम के चार पत्ते लगाकर बीच में नारियल रखकर व लोटे पर सांखिया मांडकर एवं लोटे में मोळी बांधकर गेट पर बीन की दाहिनी तरफ हाथ में लेकर अथवा सर पर रखकर खड़ी होती है। बीन जब घोड़ी पर चढ़ने के लिये प्रस्थान करे तब उस कलश में एक रुपया डाले। इसे सूण ( शकुन) मनाना कहते हैं।

beendraja
छोटा नारियल, सेवरा, कस

निकासी की तैयारी :

सजी हुई घोड़ी की व्यवस्था, बेण्डबाजा की व्यवस्था, निकासी का समय निर्धारण, परिवार एवं मित्रों व सम्बन्धियों को निकासी हेतु उपस्थित होने के फोन / सूचना ।

घोड़ी के लिए भिगोई हुई चने की दाल, एक साड़ी, ( आरता की थाली - रोळी, मोळी, चावल, गुड़, मेहंदी, जल का लोटा), काजल की डिब्बी, कांच, चांदी का रुपया, दूल्हे को नापने का नेतरा, लगाम पकड़ाई के लिफाफे, आरता का लिफाफा, काजल घलाई का लिफाफा, कांच दिखाई का लिफाफा, लूणराई की पोटली, सजी हुई नीम की डाली (तोरण मारने के लिये ), उपस्थित मेहमानों की मनुहार के लिये पेय, मेवा, मनुहार आदि की व्यवस्था ।

घोड़ी की पूजा एवं निकासी - वर पक्ष :

बीनराजा को घोड़ी पर बैठाकर मां पहले घोड़ी की पूजा करती है। घोड़ी को दाल खिलाती है । घोड़ी को तिलक करती है । उसकी चोटी करती है। साड़ी ओढ़ाती है एवं खुरों में मेहंदी लगाती है । फिर चांदी के से रुपये बीनराजा को तिलक करती है। साड़ी का पल्ला एवं नेतरा के साथ मां बीन के सीने को चार बार क्रोस नापती है। गुड़ से मुंह जुठाती है। आरता करती हैं। दादी, बड़ी मां या मां दूध पिलाने का नेग करती है। काकी, भाभी वगैरह काजल घालती है। काँच दिखाती है। सब महिलाएं बीनराजा की ऊंवारी करती हैं। रुपये ऊंवारकर पास में नाई या बीन को काजल घालती भाभी नौकर जो भी खड़ा लगाम पकड़ते जंवाई हो उसे देती हैं। सभी उपस्थित जवांईयों से घोड़ी की लगाम पकड़ाई कराई जाती है, उन्हें लगाम पकड़ाई का नेग देते हैं। घोड़ी पर पीछे एक छोटी लड़की को लूणराई की पोटली देकर बैठा देते हैं जो थोड़ी-थोड़ी देर में लूणराई करती रहती है । सब औरतें गीत गाती हुई थोड़ी दूर घोड़ी के पीछे-पीछे जाकर वापस आ जाती हैं। घोड़ी पर बीनराजा एवं उपस्थित परिवार एवं मेहमान ढुकाव के लिये प्रस्थान करते हैं जिसे निकासी कहते हैं। उपस्थित मेहमानों की पेय, मेवा आदि से मनुहार होती है।

मन्दिर दर्शन - वर पक्ष :

बीनराजा को निकासी के बाद पहले मन्दिर दर्शन के लिये ले जाते हैं । मन्दिर में नारिलय व रुपये चढ़ाकर धोक देकर आगे दुकाव के लिये बढ़ते हैं ।

टूटिया :

पुराने जमाने में विवाह के दिन, रात में लड़के के घर में औरतें टूटिया करती थीं। टूटिया में एक औरत को वर बनाते हैं एवं दूसरी को वधू बनाते हैं एवं दोनों का विवाह करते हैं । आजकल यह रिवाज नहीं होता।

हमारे-गीत

46 Sevra

Bhat Bharan Aai

Lehariyo to Lyadyo Gori

Mhare Sava Lakh Ri

Moriya

Run Jhun Baje Ghoonghara

Toote Bvajuda Ri Loom

Aachho Bolyo Re Dhalati

Balam Mhane Yaad Ghana Aao

Bhavar Baga me Aai jyo jee

Kali Kali Kajaliya ri rekh

Piya Aao to Poori

Poorab-i-Nokari-ji

Ud ud re Mhara Kala re

Geega Tharo Palnoo

Paach Mohar Ko Saiba

Goradi Kar Sola

Mhara Chailbhavar Ro Kangasiyo

Mhe to Pani Re

Panihari

Sheere Chaal Ri Panihari

© 2025 © Copyright - रीति रिवाज | Developed By webscos.com
  • Terms and conditions
  • Privacy policy
  • Contact